शक्ति छोटी बढ़ी नहीं होती इंसान की सोच और शक्ति का सही पय्रोग
साधना और भगति दोनों एक दूसरे से अलग है लेकिन कोई शक्ति छोटी बड़ी नहीं होती है छोटा और बड़ा तो आज का इंसान है क्युकी उसकी सकोह पर सब कुछ डिपेंड करता है ! और आज के टाइम मैं गुरु प्रति भाव सही और सही गुरु मिले पाना बहुत मुश्किल है क्युकी गुरु तो है लेकिन स्वार्थ है तो काम नहीं होगा बिना स्वार्थ वाला बाँदा ढूंढ पाना बहुत हे मुश्किल है इसलिए गुरु नहीं है तो इष्टदेव की पूजा करो आप सभी इतना नाम जपो के इष्टदेव बाबा कुछ हाज़िर हो कर आपको बोले मैं तेरे साथ कुछ तू जो करना है कर उसको बोलते है भगति का फल और सेवा का फल माता पिता सबसे पहले है साधना कोई बी हो लेकिन सेवा है तो काम बनेगा नहीं तो मुश्किल है क्यों सेवा तभी मानी जाती है जब अंदर के भाव सही है दिल मैं पाप होगा बहार से सेवा तो बी काम नहीं होता है ! हम सब इंसान एक दूसरे को तो गली दे सकते है बुरा भला बोल सकते है दिल मैं ईर्षा भाव और दूर के लिए बुरा करना यहाँ तक सिमित है क्युकी इंसान तो मोह माया और इस्त्री भोग मैं फसा है लेकिन परमात्मा के साथ चालाकी नहीं चलेगी क्युकी देने वाला और लेने वाला वही है उसको तो सब पता है आपका मन पढ़ कर ही आपको वो वही चीज़े देता है जिसके आप काबिल हो इसलिए गुरु और परमात्मा एक है
शिव सवरूप गोरखनाथ जी की बाणी
सद्गुरु दानी सद्गुरु देवे गुरु की बाणी
गुरु मेरा शिव सवरूप चिटा बैल हाथ च
तिरसुल लम्बी जट्टा शिवरूप गल खेले
शेषनाग मारे फुंकार करदे बेहाल ॐ शिव
गोरक्षयोगी ४ खूंट १६ भवन भोगी !
सनी शर्मा शिव गोरक्षधाम सतनाली !
मेरे शब्द मेरे गुरु जी की बाणी है मैं तो लिखता हूँ वही लिखवाता है मेरे से मुझे नहीं पता मेरे शब्द आपको समझ आयगे जा नहीं लेकिन सच यही है बहार कुछ नहीं सब कुछ आपके अंदर है उसको ढूँढो सतनाम आदेश गुरु जी को आदेश आदेश सनी शर्मा शिव गोरक्षधाम सतनाली !
साधना और भगति दोनों एक दूसरे से अलग है लेकिन कोई शक्ति छोटी बड़ी नहीं होती है छोटा और बड़ा तो आज का इंसान है क्युकी उसकी सकोह पर सब कुछ डिपेंड करता है ! और आज के टाइम मैं गुरु प्रति भाव सही और सही गुरु मिले पाना बहुत मुश्किल है क्युकी गुरु तो है लेकिन स्वार्थ है तो काम नहीं होगा बिना स्वार्थ वाला बाँदा ढूंढ पाना बहुत हे मुश्किल है इसलिए गुरु नहीं है तो इष्टदेव की पूजा करो आप सभी इतना नाम जपो के इष्टदेव बाबा कुछ हाज़िर हो कर आपको बोले मैं तेरे साथ कुछ तू जो करना है कर उसको बोलते है भगति का फल और सेवा का फल माता पिता सबसे पहले है साधना कोई बी हो लेकिन सेवा है तो काम बनेगा नहीं तो मुश्किल है क्यों सेवा तभी मानी जाती है जब अंदर के भाव सही है दिल मैं पाप होगा बहार से सेवा तो बी काम नहीं होता है ! हम सब इंसान एक दूसरे को तो गली दे सकते है बुरा भला बोल सकते है दिल मैं ईर्षा भाव और दूर के लिए बुरा करना यहाँ तक सिमित है क्युकी इंसान तो मोह माया और इस्त्री भोग मैं फसा है लेकिन परमात्मा के साथ चालाकी नहीं चलेगी क्युकी देने वाला और लेने वाला वही है उसको तो सब पता है आपका मन पढ़ कर ही आपको वो वही चीज़े देता है जिसके आप काबिल हो इसलिए गुरु और परमात्मा एक है
शिव सवरूप गोरखनाथ जी की बाणी
सद्गुरु दानी सद्गुरु देवे गुरु की बाणी
गुरु मेरा शिव सवरूप चिटा बैल हाथ च
तिरसुल लम्बी जट्टा शिवरूप गल खेले
शेषनाग मारे फुंकार करदे बेहाल ॐ शिव
गोरक्षयोगी ४ खूंट १६ भवन भोगी !
सनी शर्मा शिव गोरक्षधाम सतनाली !
मेरे शब्द मेरे गुरु जी की बाणी है मैं तो लिखता हूँ वही लिखवाता है मेरे से मुझे नहीं पता मेरे शब्द आपको समझ आयगे जा नहीं लेकिन सच यही है बहार कुछ नहीं सब कुछ आपके अंदर है उसको ढूँढो सतनाम आदेश गुरु जी को आदेश आदेश सनी शर्मा शिव गोरक्षधाम सतनाली !
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