Friday, 16 March 2018

ब्रह्मास्त्र महा विद्या श्रीबगला स्तोत्र

ब्रह्मास्त्र महा विद्या श्रीबगला स्तोत्र

सद्जुग मैं हर एक वधा का निवरण है बात आती है आपकी श्रद्धा भाव की गुरु कृपा वाले ही सब कुछ नहीं कर सकते है क्युकी गुरु और कृपा दो अलग शब्द है गुरु नहीं है तो कृपा ही सही लेकिन कृपा सेवा भाव से और अच्छे कर्मो से होती है ! कारन सही कैसे होते है जब आप अपने से पहले दुवारो का भला सोचते हो तभी मालिक की किरपा होती है कृपा तो मंदिर मैं झाड़ू लगाने वाले पर बी होती है क्युकी प्रभु पिगल जाते है जल्दी ही बस पिघलने वाले चाहिए आप सभी समझदार हो अलख आदेश सनी शर्मा शिव गोरक्षधाम सतनाली ! 

विनियोगः- ॐ अस्य श्रीब्रह्मास्त्र-महा-विद्या-श्रीबगला-मुखी स्तोत्रस्य श्रीनारद ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्री बगला-मुखी देवता, ‘ह्ल्रीं’ बीजं, ‘स्वाहा’ शक्तिः, ‘बगला-मुखि’ कीलकं, मम सन्निहिता-नामसन्निहितानां विरोधिनां दुष्टानां वाङ्मुख-गतीनां स्तम्भनार्थं श्रीमहा-माया-बगला मुखी-वर-प्रसाद सिद्धयर्थं पाठे विनियोगः ।

ऋष्यादि-न्यासः- श्रीनारद ऋषये नमः शिरसि, अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे, श्री बगला-मुखी देवतायै नमः हृदि, ‘ह्ल्रीं’ बीजाय नमः गुह्ये, ‘स्वाहा’ शक्त्यै नमः नाभौ, ‘बगला-मुखि’ कीलकाय नमः पादयोः, मम सन्निहिता-नामसन्निहितानां विरोधिनां दुष्टानां वाङ्मुख-गतीनां स्तम्भनार्थं श्रीमहा-माया-बगला मुखी-वर-प्रसाद सिद्धयर्थं पाठे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।
षडङ्ग-न्यास कर-न्यास अंग-न्यास
ह्ल्रां ॐ ह्ल्रीं अंगुष्ठाभ्यां नमः हृदयाय नमः
ह्ल्रीं बगलामुखि तर्जनीभ्यां नमः शिरसे स्वाहा
ह्ल्रूं सर्व-दुष्टानां मध्यमाभ्यां नमः शिखायै वषट्
ह्ल्रैं वाचं मुखं पदं स्तम्भय अनामिकाभ्यां नमः कवचाय हुं
ह्ल्रौं जिह्वां कीलय कनिष्ठिकाभ्यां नमः नेत्र-त्रयाय वौषट्
ह्ल्रः बुद्धिं विनाशय ह्ल्रीं ॐ स्वाहा करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः अस्त्राय फट्

ध्यानः- हाथ में पीले फूल, पीले अक्षत और जल लेकर ‘ध्यान’ करे –
मध्ये सुधाब्धि-मणि-मण्डप-रत्न-वेद्याम्,
सिंहासनोपरि-गतां परिपीत-वर्णाम् ।
पीताम्बराभरण-माल्य-विभूषितांगीम्,
देवीं नमामि धृत-मुद्-गर-वैरि-जिह्वाम् ।। १
अर्थात् अमृत का सागर । बीच में मणि-मण्डप की रत्न-वेदी । उस पर सिंहासन । उस पर पीले रंग की देवी ‘बगला’ आसीन हैं । उनके वस्त्र, आभूषण तथा पुष्प-माला- सब कुछ पीले रंग के ही हैं । बाँएँ हाथ में शत्रु की जीभ खींचकर, दाहिने हाथ से मुद्-गर लेकर, उस पर प्रहार करने जा रही है । उन्हीं माँ बगला को मेरा प्रणाम ।। १
जिह्वाग्रमादाय करेण देवीम्,
वामेन शत्रून् परि-पीडयन्तीम् ।
गदाऽभिघातेन च दक्षिणेन,
पीताम्बराढ्यां द्वि-भुजां नमामि ।। २
अर्थात् बाँएँ हाथ में शत्रु की जीभ को खींचकर, दाहिने हाथ में गदा लेकर प्रहार करती हुई, पीताम्बरा द्वि-भुजा बगला को मेरा प्रणाम ।।

जैसे बताया है वैसे ही की जिये क्युकी नवराति की पूजा पर आप किसी बी माता की पूजा और भगति कर सकते हो गुरु नहीं है इष्टदेव का स्मरण करके करो आप सभी सब कुछ सही होगा और अनुभव बी होगा आप बस सच तन से सुरु हो जाओ मैं बाबा से अभी ही प्रे लगा देता हूँ जो बी करे मेरा मालिक सद्गुरु गोरखनाथ जी महाराज सफलता से सबको जय गुरु गोरखनाथ जी मरहराज सनी शर्मा शिव गोरक्षधाम सतनाली ! 




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